महान संत नीब करोली बाबा की अनंत गाथाएँ : वज्र देह
इलाहाबाद, चर्चलेन, में बाबा बैंठे थे, तभी एक दम्पति वहाँ उपस्थित हूये, जिन्होंने अपना बेटा खो दिया था, वे बाबा के समक्ष बहुत रो रहे थे और बाबा उन्हें समझाते रहे और उनसे बोले, "यह बालक तुम्हारी गोद में पुनः खेलेगा ।"
उनके जाने के बाद मैं (रमा जोशी) बाबा से बोली, "महाराज भगवान ऐसा कष्ट क्यूँ देता है ?" इससे अच्छा तो यही है कि ऐसी सन्तान मिले ही नहीं।" तब बाबा जी बोले, "तू समझती नहीं है, यह मृत्युलोक है, यहाँ जो आता है वो जाता है - कोई जल्दी, कोई पीछे। सब लोग अपना अपना कर्म भोग लेकर आते है और चले जाते है ।"
और ऐसा कहते कहते बाबा ने मेरे दोनो हाथ पीछे से माला की तरह अपने सीने में रख लिये। पहले तो उनका सीना मुलायम सा लगा पर अचानक शीघ्र ही उसकी कोमलता कठोर होने लगी, कठोर होते होते वज्र समान होने लगी और साथ में ऊँची भी। मूझे लगा कि मेरी दोनों हथेलियाँ किसी शिला के ऊपर जमी हैं।
हनुमान जैसी वज्र देह का रूप दिखा दिया बाबा ने पर इस चमत्कार से मैं भयभीत न होकर आनंदित हो गयी ।केवल आनंद अनुभूति हुई मुझे, जो महाराजजी की अपनी देन थी।
जय गुरूदेव
अनन्त कथामृत
-- पूजा वोहरा/नयी दिल्ली