"गुरु भक्ति भाव और ज्ञान का प्रकाश"

"गुरु भक्ति भाव और ज्ञान का प्रकाश"

4 min read

प्रेम, शांति, प्रसन्नता, संतोष, और सत्य की खोज हर आत्मा की वास्तविक इच्छा और अनंत यात्रा है। ईश्वर की माया (परिवर्तन अवस्था) के कारण हर मनुष्य अपने आस-पास के दृश्य संसाधनों, जैसे कि उसके शरीर, वस्तुओं, लोगों और स्थितियों इत्यादि को अपने नियंत्रण में लेकर पूर्ण करने का प्रयास करता है। संपूर्ण जीवन मनुष्य सुख प्राप्ति के लिए प्रयास करता है किन्तु भीतर गहरे दुःख, असंतोष और अप्रसन्नता के भाव गहन रूप में विद्यमान रहते हैं |

प्रतिकूल परिस्थितियां, समस्याएं वास्तव में भगवान की कृपा हैं, जिनके माध्यम से समस्त आत्माएं नश्वर अस्तित्व से ऊपर उठ सकती हैं | माया का भ्रम तोड़ कर परम आनंद, शांति, सत्य और संतोष की स्थिति प्राप्त कर सकती हैं। वास्तव में ईश्वर की गहरी कृपा से प्रतिकूलताओं में उत्पन्न मानव जीवन की समस्त असंतुष्टियाँ आत्माओं के मूल रूप में आने का मार्ग प्रशस्त करती है ।

सच्चे ऋषियों-मुनियों द्वारा प्रकट सत्य, दुनिया भर के सभी साधकों के लिए समान है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों और वे जिस भी पथ पर चल रहे हों । सत्य किसी भी भाषा से परे है , कलाकारों, पंथ और लिंग के सभी द्वंद्वों से परे है । भगवत गीता के अनुसार ; प्रभु स्पष्ट रूप से हमारी वास्तविक पहचान के सत्य की बात करते हैं। निराकार, अविनाशी आत्मा की पहचान । वास्तविक अस्तित्व की स्थिति । सत्य और परम आनंद की स्थिति।

भक्ति, ज्ञान, कर्म के दिव्य मार्ग सभी एक ही वास्तविकता की ओर ले जाते हैं। आत्म बोध का लक्ष्य वह वास्तविक लक्ष्य है जिसके लिए हमनें जन्म लिया है | हम सब अज्ञानता वश भौतिक लाभ और कार्यों के लिए प्रयास करने लगते हैं । संपूर्ण विश्व में प्रत्येक धर्म और समुदाय में नैतिक मूल्यों, अच्छे कार्यों, निस्वार्थ सेवा और ह्रदय एवं और मन की शुद्धि की धार्मिक प्रथाओं पर बल दिया जाता है । इन सबसे ऊपर ईश्वर की अनुकम्पा, दया और सच्चे आध्यात्मिक गुरुओं की करुणा है, जो हमारे ह्रदय की भावनाओं को परिवर्तित कर देती हैं | इसके साथ ही गुरुजन हमारे मन को शुद्ध करते हैं और हम स्वयं को प्रबुद्ध करने में सक्षम हो जाते हैं।

एक सच्चे साधक के जीवन का सबसे अद्भुत चरण तब आरम्भ होता है जब एक शिष्य अपने आध्यात्मिक सद्गुरु से मिलता है । सद्गुरु निश्चित रूप से एक हैं, सद्गुरु निस्संदेह एक आत्म बोध से परिपूर्ण आत्मा हैं जो अनंत या ईश्वर के साथ एकसार है | जिस प्रकार एक तत्व की सबसे छोटी इकाई परमाणु में तत्व के समस्त गुण निहित होते हैं, उसी प्रकार सद्गुरु भी एक जागृत चेतना हैं, जिसमें समष्टि चेतना के समस्त गुण विद्यमान हैं । वह अस्तित्व में सच्चा प्रकाश हैं ।

सद्गुरु स्वयं ही सच्चा आनंद, सच्चा परमानंद हैं तथा शरीर, मन और भावनाओं से परे हैं । गुरु हर क्षण सत्य में, सच्चे करुणा भाव में, सच्चे प्रेम में और असीम सीमाओं में मौजूद होता है। केवल गुरु की जागृत चेतना ही दूसरों को प्रकाश में ला सकती है, सभी प्रतिकूलताओं में मार्ग प्रदान कर सकती है और हर किसी को सदा के लिए सर्वोच्च शांति, एकांत और आनंद का अनुभव कराने में सक्षम बनाती है।

साधक ईश्वर की कृपा को प्राप्त करने में सक्षम होने के बाद ही गुरु को प्राप्त करता है। सभी शिष्यों द्वारा विश्व भर में यह अनुभव है कि "गुरु मनुष्य के रूप में अवतरित ईश्वर है” । "वह शब्दों से परे है" । वही एक है जिसने अपनी यात्रा पूर्ण कर ली है और उसकी चेतना बिना किसी स्वार्थ के सभी की सहायता हेतु तत्पर है | गुरु सभी को प्रेम करता है, निष्पक्ष, बिना शर्त एक दयालु माँ के रूप में; और सिर्फ गुरु ही सभी प्रेम करने वालों के भ्रम के सभी बंधनों को तोड़ने के लिए आगे आता है | समस्त भय, सीमाओं, दु:खों और स्वयं की वास्तविकता से पहचान कराने में सक्षम, स्व, एकमात्र , सर्वोच्च अनन्त आत्मा ।

मन को केवल गहरी भक्ति / भक्ति से निकली सच्ची शरणागति, सच्ची शुद्ध आत्माओं की संगति और गुरु एवं ईश्वर की सच्ची कृपा को आत्मसात करके शांत किया जा सकता है। सभी के प्रति नि:स्वार्थ सेवा, ईश्वर का नाम ध्यान, ईमानदारी से हमारे कर्तव्यों का निर्वाह करने वाले व्यक्ति ही सच्ची कृपा प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। जिस तरह एक नदी के लिए महासागरों की ओर बहना स्वाभाविक है, उसी तरह आत्मा का अपने स्रोत की ओर प्रवाहित होना स्वाभाविक है; परम, ' परब्रह्म ' की ओर ।

यह हम सभी के लिए वास्तविक और शाश्वत प्रेम, शांति और आनंद के लिए तरसने का वास्तविक कारण है। एक सच्चे गुरु नि:स्संदेह मानव रूप में अवतरित परम आनंद हैं। वह सभी शिष्यों की सर्वोच्च शक्ति, सच्ची करुणा और सच्चा साथी है। केवल सच्चा भक्त, भगवान का सच्चा साधक ही सच्चे गुरु को पहचान सकता है। वह बाहरी आवरण से नहीं किन्तु अपनी चेतना या ' चेतना ' से परिभाषित होता है ।

सच्चे गुरु की कृपा के बिना हमारे सभी कर्मों / कर्मों के बंधनों को तोड़ना असंभव है। उसके जागृत राज्य की सहमति के बिना, हमारे लिए मन और शरीर के सभी राज्यों से ऊपर उठना असंभव है। एक सच्चा गुरु स्वयं सत्य और आत्मबोध का पथ प्रदर्शक होता है । किसी आत्मा के नैसर्गिक स्वभाव में हमारा वास्तविक सत्य उसकी कृपा से उभरने लगता है और वह तब होता है जब हम वास्तव में अपने अस्तित्व में रहना शुरू करते हैं ।

हम मन और अहंकार की सीमा और क्षमताओं से ऊपर उठते हैं और सही अर्थ में स्वयं को समझ पाते हैं। यह तब होता है जब भगवान की प्रेम, करुणा रुपी निरंतर अनुकम्पा स्वयं को प्रकट करना शुरू कर देती है और एक साधक सच्चा आनंद और संतुष्टि प्राप्त करता है।

-- सत्येन्द्र कुमार गुप्त, लखनऊ

Related Stories

No stories found.
logo
The News Agency
www.thenewsagency.in