बिठूर ने अपनाया, दुलराया...एक साईं भक्त के जीवन की सच्ची कहानियाँ

बिठूर ने अपनाया, दुलराया...एक साईं भक्त के जीवन की सच्ची कहानियाँ

बाबा से मेरा यह कहना कि परिचय बिठूर में हुआ तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी लेकिन वहां के पुजारियों को इससे कोई सरोकार न था। ऐसा कह रहा हूं, तो इसलिए कि वहां के कनिष्ठ पुजारी मेरी भेंटों को शुरू-शुरू में न लेते और मेरे द्वारा ले जाई गई भारी-भरकम माला को बाबा के श्रीचरणों में रख देते जबकि मैं चाहता था कि माला बाबा की प्रतिमा पर चढ़ाई जाए । जो उनके गले की शोभा बढ़ाए।

चूंकि मैं पत्रकार हूं , सो, मेरे भीतर भी वह ठसका है, जो स्वाभाविक रूप से किसी भी पत्रकार में होता है और मैं इस मामले में कोई अपवाद नहीं हूं। मेरी उधेड़-बुन जारी रहती कि माला बाबा के चरणों में ही क्यों ? लेकिन एक दिन स्वयं बड़े पुजारी, गुरुजी आ पहुंचे और उन्होंने माला के लिए हाथ बढ़ाया जो मैं पहले ही कनिष्ठ पुजारी को थमा चुका था। सो, मैं तत्काल दूसरी माला ले आया। गुरुजी ने यह माला बाबा की प्रतिमा पर चढ़ा दी। इसी से पता चलता है कि बाबा अपने भक्त के मन की बात कितना अच्छे से जान लेते हैं और तत्परता से उसकी सहायता करते हैं।

उस दिन से लेकर आज का दिन है, मुझे बिठूर के मंदिर में बाबा का सदा ही अलौकिक व अनूठा आशीर्वाद मिला है। धीरे-धीरे सुदूर बिठूर का यह मंदिर मेरा दूसरा निवास सा बन गया और मंदिर में कार्यरत सभी मेरा एक परिवार। वहां झा गुरुजी थे, मैनेजर मिश्रा जी, जो बाबा की निशानियां भेट स्वरूप मुझ पर लुटाते थे, लल्लू, जिसकी भंगिमा में और गायन में बाबा के प्रति उसका प्यार छलकता व झलकता था। गायक गौतमजी, जिनके गायन से कई बार स्पष्ट रूप से बाबा स्वयं आनंदित व आह्लादित हुए हैं।

इनके अलावा कई ऐसे चेहरे जिन्हें मैं जानता तो न था पर जिनसे एक अन्जान बंधन में बंध गया था । फिर वहां के चौकीदार, खाना बनाने वाले. सफाई कर्मचारी सबमें हर कोई अपना-सा दिखता था। देखते-देखते बाबा का मंदिर भव्य बनता गया और भीड़ में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई।

वहीं पर एक अपाहिज, 14-15 साल का लड़का था, जो मंदिर के बाहर सभी को हैंडपंप से पानी पिलाता रहता । उसके दोनों पैर पोलियोग्रस्त थे। पता नहीं क्यों वो लड़का, जिसको मैं हीरो बुलाता हूं, मुझे देखता तो लड़खड़ाता हुआ आता, काम छोड़ते हुए, गंदे व गीले कपड़ों में ही मेरे गले लग जाता था और आज भी यह प्रक्रिया जारी है। बाबा के इस अनन्य भक्त से मेरा स्नेह आज बहुत बढ़ चुका है और उसे देखता हूं , तो उसके बाबा के प्रति लगाव को देख कर नतमस्तक ही रहता हूँ।

(मोहित दुबे की पुस्तक साईं से साभार)

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