रामकृष्ण परमहंस के 101 प्रेरक प्रसंग : ...और आगे बढ़ो
एक बार स्वामी परमहंस के दर्शन करने के लिए एक गरीब लकड़हारा आया। स्वामी जी तो मन की हर बात जान लिया करते थे । उन्होंने अनजान बनते हुए पूछा, "क्या काम करते हो?" "महाराज, लकड़हारा हूँ। बड़ी मुश्किल से अपना और घरवालों का निर्वाह करता हूँ।" ,
"कहाँ काटते हो लकड़ी?" ,"जी, जंगल में " "तो थोड़ा और आगे बढ़ो ।" लकड़हारे के मन में बात बैठ गई और अगले ही दिन वह लकड़ी काटने के लिए और आगे बढ़ गया। उसे वहाँ चंदन के पेड़ मिले । कुछ दिनों बाद वह पुनः स्वामी जी के दर्शन करने पहुँचा तो स्वामी जी ने पूछा, क्या हाल है?" "कृपा है, महाराज।"
अब भी उसी जंगल में लकड़ी काटते हो?" "जी महाराज।" "तो थोड़ा और आगे बढ़ो।"
अगले दिन वह और आगे बढ़ा तो उसने देखा कि वहाँ चाँदी की एक खान है। वह प्रसन्न मुद्रा में स्वामीजी के चरणों में धन्यवाद करने पहुँचा, किंतु उसके कुछ भी बोलने से पहले ही स्वामी जी ने फिर वही दोहरा दिया, "और आगे बढ़ो।" कुछ दिनों में आगे बढ़ते-बढ़ते उसे सोने की, फिर हीरे की खानें मिलने लगीं ।
अब उसकी सारी दरिद्रता समाप्त हो चुकी थी। इस बार जब वह स्वामी जी के दर्शनों के लिए पहुँचा तो स्वामी जी ने पास बैठाकर समझाया, "यह तो तुम्हारी सांसारिक स्थिति के लिए था। अब तुम बिलकुल ऐसे ही ईश्वर की साधना के मार्ग में भी आगे बढ़ो और आगे बढ़ते जाओ।" वह धनी बन चुका लकड़हारा दिव्य ज्ञान पाकर स्वामी जी का परम भक्त बन गया।
इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए। चाहे ज्ञान का मार्ग हो , चाहे भक्ति का और चाहे प्रेम का, हर मार्ग में आगे और आगे बढ़ते रहने पर ही उपलब्धियाँ हासिल होती हैं।
(डाक्टर रश्मि की पुस्तक रामकृष्ण परमहंस के १०१ प्रेरक प्रसंग से साभार )