बाबा कहते हैं …भक्ति की सफलता मन की पवित्रता पर निर्भर है!

बाबा कहते हैं …भक्ति की सफलता मन की पवित्रता पर निर्भर है!

कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, धार्मिक यात्रा तभी फलदाई होती जब हमारा मन पवित्र हो। अगर मन विकारों से भरा हुआ है तो चाहे जो भी करो सब व्यर्थ ही है । कुछ संत तीर्थ यात्रा पर निकल रहे थे।वे संत रविदास का उपहास किया करते थे और उनसे द्वेष रखते थे।

उन्होंने रविदास जी से भी चलने के लिए अनुरोध किया तो उन्होंने एक लौकी उन्हें देकर निवेदन किया कि जहां जहां आप लोग स्नान करिएगा वहां वहां मेरी इस लौकी को भी स्नान और दर्शन करवा दीजिएगा।

वर्षों के बाद जब संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो रविदास जी को उनकी लौकी जो हर तीर्थ का दर्शन और स्नान करके लौटी थी, दे दिया। रविदास जी ने संतों को भोजन प्रसादी का अनुरोध करके उसी लौकी की सब्जी और पूड़ी बनाकर संतों को परोस दिया।

किंतु संतो ने जैसे ही एक ग्रास मुंह में डाला वैसे ही उस ग्रास को तुरंत थूक दिया क्योंकि वो लौकी पहले से ही कड़वी थी और कड़वी ही रह गई । उसमें तीर्थ दर्शन और स्नान का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा । अब संतों की समझ में आ गया था कि जब तक हमारा अंतःकरण मालिन है , तब तक सब कुछ व्यर्थ ही है । पहले निर्विकारी बनो, तभी पुण्य लाभ प्राप्त होगा, वरना घूमते रहो।

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