The Fauji Corner
कुछ दीप जलाते राहों में, कुछ होते गैरों की बाहों में
कुछ उभरते ख्वाबों की दुनिया में,
कुछ उन रंग बिरंगी महफिलों में,
कुछ दीप जलाते राहों में,
कुछ होते गैरों की बाहों में,
कुछ मिलते नहीं बहारों में,
कुछ बुन जाते सबको अपनों में,
कुछ बांटें खुशबू बागों में,
कुछ लूटें अस्मत रातों में,
कुछ बनके आते, कश्ती दरिया में,
कुछ फूल खिलाते कांटों में,
कुछ बनाते फासले फैसलों में,
कुछ मर जाते गैरों को जीवन देने में,
कुछ ले जाते गम की बगिया में,
कुछ बनते शब्दकोश उन ग़ज़लों में,
कुछ लिखते ईमान, खुद के चेहरों में,
कुछ तो रहते मस्त ही यारों में,
कुछ चमकें आसमां के सितारों में,
कुछ ज्यादा है बारिश कुछ ही कुछ में,
कुछ मैंने भी दीप जलाए निगाहों में......
कुछ यूं अग्नि परीक्षा, है आंगन में
-- प्रदीप अग्निहोत्री/नयी दिल्ली