The Fauji Corner
गंगा तो गोरी थी, पर प्रलय काली थी...
गंगा तो गोरी थी,
पर प्रलय काली थी,
आशायें सब मिटायीं थीं,
जान प्रार्थी उनकी दुनियां थीं,
लहरें विकराल रूप लिए थीं,
देश पर एक त्रासदी थी,
लुट गयीं बहुत जानें थी,
धरा से उनकी विदाई थी,
कुछ की जानें भी बचाई थीं,
कुछ की बनी जल समाधि थीं,
कुछ कुछ बहते आईं थीं,
कैसी ये रुसवाई छाई थी,
मौत का खिलवाड़ करने आई थी,
मजदूरों की देश कुर्बानी थी,
चमोली जख्म हरे करने वो आई थीं,
हमने ये दिल से दुआ मांगी थी,
खुदा की रहमत, दुहाई साथ मांगी थीं,
याद में कई दीप माला जिनके चढ़ाई थीं,
व्यथित ख्यालों में...
-- प्रदीप अग्निहोत्री/नयी दिल्ली