योगी सरकार की खोई साख की भरपाई के लिए मुद्दे की तलाश

योगी सरकार की खोई साख की भरपाई के लिए मुद्दे की तलाश

पंचायत चुनाव परिणाम आने के बाद भारतीय जनता पार्टी को एहसास हो चुका है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार की साख जनता में बहुत गिर चुकी है। बची साख एवं गिरी हुई साख दोनों को मिलाकर नए सिरे से 2022 चुनाव के लिए सरकार और संगठन सभी मिलकर चुनावी मुद्दे की तलाश करने में जुटे हैं। यह माना जा रहा है कि अगर पंचायत चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को अपेक्षित सफलता मिल गई होती तो शायद इस तरह का हाहाकार नहीं मचता क्योंकि अभी तक सब कुछ तो ठीक ही चल रहा था।

नौकरशाह और योगी दोनों मिलकर प्रदेश के 24 करोड़ जनता के लिए हर स्तर पर 24 घंटे मेहनत कर रहे थे। ये अलग बात है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों, विधायको, सांसदो की भूमिका को बहुत सीमित कर दिया गया था। लग रहा था कि 2017 में 312 अप्रत्याशित संख्या दिलाने में इन्हीं चंद नौकरशाहों की मेहनत है और उसी मेहनत के आधार पर योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए है।

पिछले 4 सालों का अध्ययन करें तो मुख्यमंत्री के टीम 11 या कुछ चुनिंदा अफसरों का काकस, मीडिया के माध्यम से सरकार की बढ़-चढ़कर उपलब्धि गिना रहा था। जमीनी हकीकत में केवल केंद्र सरकार द्वारा जो सीधे योजनाएं जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, बिजली कनैक्शन, पीएम आवास, जन आरोग्य, पेंशन योजना, किसान सम्मान निधि, सुकन्या योजना सहित अन्य 2 दर्जन योजनायें थी वहीं दिखाई दे रही थी। उन्हीं का परिणाम रहा कि जनता को अपेक्षाकृत लाभ मिला।

4 साल तक जनप्रतिनिधियों ने लगातार नौकरशाहों की उपेक्षा झेली है लेकिन ऐसा आभा मंडल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर बना दिया गया था जिससे टकराने की किसी भी विधायक, सांसद, मंत्री की हैसियत नहीं थी। 4 सालों में जितने भी राज्यों में चुनाव हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मो3दी के बाद सबसे बडे स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ही थे। हिंदुत्व एजेंडा में योगी, मोदी से भी आगे थे और जैसा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए होता रहा है, जो भी मुख्यमंत्री बैठता है उसको इतना अहंकार हो जाता है, लगता है कि अब वह दिल्ली की कुर्सी पर ही बैठेगा।

योगी आदित्यनाथ को लेकर सर्वे में प्रधानमंत्री तक में नाम जोड़कर किया जाने लगा। इस संकट के दौरान भी अभी जल्दी ही सी वोटर ने एक सर्वे किया जिसमें प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के अलावा मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ का भी नाम जोड़ दिया गया था। हालांकि यह अलग बात है योगी को मात्र 2% और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 42% लोकप्रिय प्रधानमंत्री के रूप में जनता ने समर्थन दिया। जिस कार्यशैली में योगी आदित्यनाथ ने 4 वर्षों तक कार्य किया उस कार्यशैली में भारतीय जनता पार्टी को 312 सीटें दिलाने वाले वोट बैंक का कहीं कोई स्थान नहीं रह गया था।

उनकी टीम 11 मीडिया के माध्यम से बड़े बड़े दावे करके जमीनी हकीकत को छुपा रही थी, योगी आदित्यनाथ को इस तरीके से घेर रखा था कि उन्हें आभास ही नहीं होने दिया कि उत्तर प्रदेश में जनता किस तरह से संकट में और दवा, इलाज़ के बिना मर रही है। संख्या इतनी आधिक हो गई कि सैकड़ों की संख्या में जलती हुई लाशे और सैकड़ों उतराते हुये शव गंगा में दिखाई दिये।

पिछले चुनाव को देखें तो 2017 में उत्तर प्रदेश में अति पिछड़ों और सवर्ण मतदाताओं ने एकतरफा मतदान भाजपा के पक्ष में किया था और इनकी संख्या 50% होती है। 39% आज पिछड़े और 11% सवर्ण के अलावा अन्य भाजपा का मूल कैडर शामिल था। 2017 मे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि व्यक्तिगत स्तर पर एक विकास करने वाले मुख्यमंत्री के रूप में थी लेकिन नौकरशाहों में चंगुल में फसे अखिलेश यादव भाजपा के चुनावी आक्रामकता और रणनीति का मुक़ाबला नहीं कर पाये। परिणाम 2012 में 224 सीटे जीतने वाली पार्टी 47 सीटों पर सिमट के रह गई।

इस चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता दिलाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व के साथ उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग के चहरे के रूप में केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल थे। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में केशव मौर्य ने निश्चित रूप से बड़ी ईमानदारी के साथ कड़ी मेहनत किया। अति पिछड़ों को जोड़ने में सफलता अर्जित की। पिछड़े वर्गों में यादवों को लेकर जो नाराजगी थी, उनके भरोसे को जीतकर भाजपा के पक्ष में करने में कामयाब रहे। पिछड़े वर्ग का आकडा में 79 पिछड़ी जातियाँ शामिल हैं।

जिन्हे 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। इन 27 में से सर्वाधिक लाभ अखिलेश यादव की सरकार में यादव को मिला। लोक सेवा आयोग में या अन्य विभागीय और पुलिस भर्ती में यादवों की संख्या निश्चित रूप से ज्यादा थी। इस सब का जबरदस्त रूप से प्रचार किया गया और यह लग रहा था कि कुर्सी अति पिछड़े नेता केशव मौर्य को मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अप्रत्याशित रूप से भाजपा और संघ ने हिन्दुत्व एजेंडे को आगे करने के लिए राम मंदिर आंदोलन में अगुवाई करने वाले गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ को ज़िम्मेदारी दी। जो अभी तक निभा रहे हैं। कोरोना संकट ने सरकार के सिस्टम की कलई खोल दी।

हजारों की संख्या में लोग आक्सीजन, इलाज़ के बिना छटपटा -छटपटा के मरे। श्मशान और काबिस्तान में लोगों को अंतिम संस्कार एवं दफनाने के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ा। अप्रैल महीने में जब कोरोना वायरस लोगों को अपनी गिरफ्त मे ले रहा तो योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल के चुनाव रैलियों में व्यस्त थे। उनकी टीम 11 मीडिया के माध्यम से बड़े बड़े दावे करके जमीनी हकीकत को छुपा रही थी, योगी आदित्यनाथ को इस तरीके से घेर रखा था कि उन्हें आभास ही नहीं होने दिया कि उत्तर प्रदेश में जनता किस तरह से संकट में और दवा, इलाज़ के बिना मर रही है। संख्या इतनी आधिक हो गई कि सैकड़ों की संख्या में जलती हुई लाशे और सैकड़ों उतराते हुये शव गंगा में दिखाई दिये।

जहां तक वोट बैंक की बात है जिन 39% अति पिछड़े एवं 11% सवर्णों ने बढ़चढ़ कर अप्रत्याशित सफलता दिलाई थी। जातीय समीकरण को देखे तो 52% पिछड़ों में यादव, कुर्मी, लोध, जाट आदि 12 प्रतिशत एवं 40 प्रतिशत मौर्य, कश्यप, राजभर, विश्वकर्मा, कुंभार, लोहार, नूनिया, मोराव, निषाद आदि 75 अतिपिछड़े जाति जिनकी आबादी 39% है। इन सभी ने 2017 मे एकतरफा भाजपा की मदद की थी जिनमे सवर्णों में 7% ब्राह्मण और 39% अति पिछड़ी जाति दोनों योगी आदित्यनाथ भाजपा से जबर्दस्त नाराज है।

सोशल मीडिया पर अपने को खोने वाले लोगों ने इस दुख दर्द का व्यापक प्रचार प्रसार किया जिससे देश ही नहीं, विदेशों में देश और प्रधानमंत्री की किरकिरी हुई। योगी ने अफसरों के माध्यम से जनप्रतिनिधियों पर ऐसा दवाब बना रखा था कि वह चाहते हुये भी अपने मतदाताओं की दिल खोल पर अपनी तरफ से मदद नहीं कर पाये। हर दिन टीम 11 नये नये गाइडलाइन जारी करती उसी आधार पर जनपदों में पुलिसिया तांडव के साथ आदेशों का अनुपालन होता रहा।

इस दौरान मंत्री बृजेश पाठक तथा सीतापुर, बलिया, अलीगढ़ सहित अन्य जनपदों से जुड़े हुये जनप्रतिनिधियों ने हिम्मत जूटा कर जनता की पीड़ा को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा, जिसे नौकरशाहों ने नेताओं का असंतोष बताते हुये उसे एक साजिश करार देते हुये दबा दिया। इस दौरान कई नेताओं से बात होती रही, उनका दर्द जुबां पर था लेकिन जन सहयोग में मदद करने में आगे नहीं आ पाये। पंचायत चुनाव, कोरोना संकट में फेल हुये सिस्टम के बाद प्रदेश में योगी ही नहीं मोदी की साख भी गिर गई है।

चुनाव में साख और सिस्टम तथा जातीय समीकरण, यही सफलता के आधार होते हैं। योगी आदित्यनाथ की साख केवल एक ईमानदारी नेता के रूप में ही बची है बाकी सरकार और सिस्टम दोनों की साख तार तार हो गई है। जहां तक वोट बैंक की बात है जिन 39% अति पिछड़े एवं 11% सवर्णों ने बढ़चढ़ कर अप्रत्याशित सफलता दिलाई थी। जातीय समीकरण को देखे तो 52% पिछड़ों में यादव, कुर्मी, लोध, जाट आदि 12 प्रतिशत एवं 40 प्रतिशत मौर्य, कश्यप, राजभर, विश्वकर्मा, कुंभार, लोहार, नूनिया, मोराव, निषाद आदि 75 अतिपिछड़े जाति जिनकी आबादी 39% है। इन सभी ने 2017 मे एकतरफा भाजपा की मदद की थी जिनमे सवर्णों में 7% ब्राह्मण और 39% अति पिछड़ी जाति दोनों योगी आदित्यनाथ भाजपा से जबर्दस्त नाराज है।

दलितों में आज भी मायावती का एकाधिकार है। 85 आरक्षित सीटों को छोड़ दे तो जहां पर चुनावी लाभ के लिए आरक्षित सीटों पर दलित जातियों में विभाजन है और वह दूसरे दलों के साथ है। 21% दलित और 18% मुस्लिम में भाजपा का कोई मजबूत दलित चेहरा नहीं है जो मायावती के विकल्प के रूप में हो इसलिए दलितों की नेता मायावती ही है। 18% मुस्लिम एकतरफा भाजपा के विरोध में 2017 की तुलना में 2022 में बहुत ही एकजुट होकर भाजपा को हराने का प्रयास करेंगे।

7% यादवों के नेता अखिलेश यादव है इसमे कोई शंका नहीं है। कुर्मियों में अनुप्रिया पटेल जो 2017 में भाजपा के साथ थी आज वह नया गठबंधन की तलाश में हैं। लोध मे निश्चित रूप से कल्याण सिंह के कारण भाजपा का दखल है लेकिन उनकी संख्या निर्णायक भूमिका नहीं निभा सकती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट लैंड किसान आंदोलन के कारण भाजपा से नाराज है जिसका पंचायत चुनाव में परिणाम दिखाई दे रहा है।

ऐसे में योगी सरकार का सिस्टम फेल, जातीय समीकरण फेल और योगी की साख राजपूतों को छोड़कर अन्य जातियों में नहीं बची है। ऐसे में हिन्दुत्व एजेंडा योगी के चेहरे से 2022 में सफलता नहीं दिला सकता है। यह पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। 2017 के चुनाव परिणाम को देखे तो भाजपा को 39% मत और 312 सीटें मिली थी लेकिन बसपा को 22% वोट मिले लेकिन सीटों की संख्या मात्र 19 थी। मत प्रतिशत में तीसरे स्थान पर 21.8% सपा की रही लेकिन संख्या के आधार पर 47 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। इस चुनाव में 47 सीटें सपा जीती तो 169 सीटों पर दूसरे स्थान पर भी रही अगर हम इन दोनों सीटों को जोड़े तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी जैसा माहौल दिखाई दे रहा है। एक बहुत बेहतर स्थिति में है और भाजपा के अरमानों पर पानी फेर सकती है ।

जहां तक मायावती का सवाल है 19 सीट जीते और 119 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही लेकिन उनकी निष्क्रियता लोकसभा चुनाव में सपा के साथ किए गए गठबंधन और फिर अखिलेश यादव के साथ एकतरफा गठबंधन तोड़कर की गई धोखा धड़ी से उनकी भी साख दलित में ही बची है। अन्य किसी वर्ग में नहीं रह गई। ऐसी स्थिति में जब पिछड़ों का एक बहुत बड़ा चेहरा अखिलेश यादव है। ब्राह्मण नाराज है कुर्मी, जाठ में जबर्दस्त नाराजगी है। 18 प्रतिशत मुस्लिम भाजपा को हराने के लिए वर्तमान हालात में सपा के साथ खड़े हैं जहां तक काँग्रेस की बात है 7 सीट जीती और 49 सीटों पर दूसरे स्थान पर थी और यह तब हुआ जब उसका सपा से समझौता हुआ। अगर सपा 403 सीटों पर लड़ी होती तो निश्चित रूप से उसका मत प्रतिशत 25 से अधिक और 200 से अधिक सीटों पर दूसरे स्थान पर होती।

नेताओं के आया राम - गया राम माहौल पार्टी की स्थिति को बताते है और आज के माहौल में सपा के ही आया राम का मौसम भारी है और गया राम भाजपा, काँग्रेस, बसपा सभी दलो से हैं। भाजपा के नेतृत्व की चिंता की यही है कि आखिर अब तहस नहस हुये सिस्टम, मुख्यमंत्री की गिरि साख और अति पिछड़ों, ब्राह्मणों, जाट, कुर्मी, दलितों आदि में जबर्दस्त नाराजगी को कैसे और किस तरह से कौन से मुद्दे आगे लाकर कम करेंगे। यही सवाल और मंथन जारी है।

कोई भी बदलाव आज के माहौल में योगी आदित्यनाथ की गिरि साख को कितना बचा पाएगा यह आने वाला समय बताएगा लेकिन इन सबके बावजूद आज भी मतदाताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग यह सोच रहा है कि मोदी कोई न कोई ऐसा करिश्मा करेंगे ऐसे मुद्दे लाएँगे जिसमे योगी की छवि, मतदाताओं की नाराजगी दूर होगी और मोदी के चेहरे पर 2017 की तरह एक बार फिर अप्रत्याशित सफलता मिलेगी क्योकि 2017 में योगी नहीं मोदी ही चेहरा थे।

(लेखक उत्तर प्रदेश के नामचीन राजनैतिक विश्लेषक हैं और पूर्व में सहारा समय उत्तर प्रदेश के स्टेट हेड रहे हैं, विचार उनके निजी हैं)

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