पूर्वांचल वासियों का खत्म होगा इंतजार, चुनाव से पूर्व एम्स गोरखपुर के तैयार होने की उम्मीद

पूर्वांचल वासियों का खत्म होगा इंतजार, चुनाव से पूर्व एम्स गोरखपुर के तैयार होने की उम्मीद

लखनऊ, जून १२, २०२१ ।। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का स्वर्णिम प्रोजेक्ट गोरखपुर एम्स के वर्ष के अंत तक पूर्ण रूपेण तैयार हो जाने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार विधानसभा चुनाव के पूर्व पूर्वांचल वासियों को उच्च चिकित्सा संस्थान सौगात के रूप में देना चाहेगी। ऑपरेशन थिएटर और 750 बेड के इंतजाम होंगे।यहां शोध भी होगा और इलाज भी।

पूर्वांचल वासियों के जीवन रक्षा का केंद्र कहे जाने वाले एम्स गोरखपुर में अभी केवल ओपीडी चलती है। पहले अगस्त 2020 तक आइपीडी शुरू करने का लक्ष्य था। लेकिन कार्यदाई संस्था के अनुसार कोरोना के कारण निर्माण कार्य बंद हो गए थे। अब फिर से काम शुरू हो गया है। 14 ऑपरेशन थिएटर बनकर तैयार है। ओपीडी में सीटी-एमआरआइ मशीन लगाई जा चुकी है। निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने पर पहले इमरजेंसी व ओटी (आपरेशन थियेटर) शुरू होंगे। इससे पूर्वांचल, बिहार के कुछ जिलों के अलावा नेपाल के लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। अभी गंभीर हालत के मरीजों को लखनऊ रेफर करना पड़ता है।

750 बेड का अस्पताल दिसंबर तक पूरी होने की संभावना है। एम्स के अस्पताल का भवन इस माह के अंत तक तैयार हो जाने की उम्मीद है। इसके बाद अन्य मरीजों की भर्ती भी शुरू कर दी जाएगी। साथ ही इमरजेंसी व आपरेशन थियेटर भी शुरू कर दिए जाएंगे। एम्स की कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर के मुताबिक डाक्टरों की कमी नहीं है। हमारा उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाई जाएं।एमबीबीएस की पढ़ाई जारी है लेकिन इस वर्ष 75 सीटें और मिली हैं। नए सत्र से यहां 125 एमबीबीएस छात्र पढ़ेंगे। इसके अलावा फार्मेसी, नरसिंग की भी पढ़ाई शुरू हो जाएगी। अभी गोरखपुर में उच्च चिकित्सा संस्थान के रूप में केवल बाबा राघव दास मेडिकल कालेज ही है।

वर्ष 2014 के अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के शुरू करने के पूर्व चुनावी सभा में नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर में एम्स खोलने का वादा किया था। वर्ष 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रधानमंत्री ने एम्स निर्माण कार्य का शिलान्यास किया, जिसे पूर्ण करने का लक्ष्य अप्रैल 2020 रखा गया। इसके पहले वर्ष 2019 में ही प्रधानमंत्री ने अपने दूसरे कार्यकाल की प्रत्याशा में अधूरे निर्माण के बीच इसका लोकार्पण कर दिया।

लेकिन निर्माण अधूरा ही रह गया। 150 ऑपरेशन थिएटर और 750 बेड वाले एम्स के निर्माण का अभी भी लोगों को इंतजार है। अब सुखद बात यह है कि फरवरी 2022 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पूर्ण रूप से एम्स बनकर अगले चंद माह में पूर्वांचल के लोगों को मिल जाएगा।

गोरखपुर एम्स का निर्माण 24 हजार वर्ग मीटर परिक्षेत्र में किया जा रहा है, जिसका शुरुआती लागत 1011 करोड़ रुपए तय किया गया था, जिसे अप्रैल 2020 तक पूरा करना था। लेकिन निर्माण की प्रगति का हाल यह रहा कि शिलान्यास के बाद 1 वर्ष के अंदर मात्र 10 प्रतिशत धनराशि ही केंद्र ने जारी की थी। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा में सांसद अहमद पटेल के एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि गोरखपुर एम्स की घोषणा साल 2014 में की गई थी। इसे 1,011 करोड़ रुपये की लागत से मार्च 2020 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 98 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं, जिसके चलते निर्माण की गति शुरू से ही धीमी रही।

एक्सपर्ट्स की मानें तो कभी धन की कमी आड़े आई तो कभी श्रमिकों की कमी। इसके बाद कोरोना काल में तो निर्माण कार्य थम सा गया। फ़िलहाल गोरखपुर एम्स में एक दर्जन विभाग संचालित हैं। दिसंबर 2020 तक निर्माण पूर्ण करने का एक बार फिर लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन अभी भी निर्माण पूर्ण होने का इंतजार किया जा रहा है। इस वर्ष के अंत तक पूर्ण हो जाने की उम्मीद है।

कोरोना की तीसरी लहर रोकने में कितना कारगर होगा एम्स

एम्स में कोरोना की तीसरी लहर रोकने की तैयारियां चल रही हैं। तीसरी लहर में बच्चों पर कोरोना का ज्यादा हमला होने की आशंका जताई जा रही है। इसलिए कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेखा किशोर ने पीडियाट्रिक आइसीयू के लिए एरिया चिह्नित करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर आने के पहले हम यह आइसीयू शुरू कर देंगे जो 30 बेड का होगा।

कार्यकारी निदेशक ने कहा है कि ब्लैक फंगस के मरीजों के इलाज में एम्स मदद करेगा। मशीन मिलते ही इसकी जांच शुरू कर दी जाएगी। इसके लिए शासन को लिखा गया है। साथ ही इस बीमारी के मरीजों के लिए रेफरल सेंटर चयनित किए जा रहे हैं, ताकि स्थिति गंभीर होने पर उन्हें रेफर किया जा सके।

एम्स दिल्ली व किंग जार्ज मेडिकल यूनवर्सिटी (केजीएमयू) लखनऊ से इसके लिए बात की जा रही है। बीआरडी मेडिकल कालेज, एम्स व आरएमआरसी की संयुक्त टीम बनाई गई है। यह टीम कोरोना की रोकथाम व बचाव के लिए लोगों को जागरूक करेगी।

टीम ब्लैक फंगस पर भी जागरूकता अभियान संचालित करेगी। ब्लैक फंगस की पहचान के लिए निजी व सरकारी क्षेत्र के साथ ही ग्रामीण अंचलों में तैनात डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी जाएगी। इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) व स्वास्थ्य मंत्रालय से गाइडलाइन आ गई है। एक-दो दिन में ट्रेनिंग शुरू कर दी जाएगी।

उन्होंने बताया कि एम्स में 34 बेड का लेवल-टू कोविड अस्पताल शुरू कर दिया गया है। यहां वेंटीलेटर नहीं है, केवल आक्सीजन की सुविधा उपलब्ध है। एंटीजन जांच, दवा व भोजन की व्यवस्था है। शीघ्र ही रीयल टाइम पालीमरेज चेन रियेक्शन (आरटीपीसीआर) जांच भी शुरू कर दी जाएगी। कोविड संक्रमित गर्भवतियों के प्रसव के लिए दो लेबर टेबल व दो बेड लगा दिए गए हैं। भवन पूरा होते ही इसे और विस्तार दिया जाएगा।

मोदी सरकार में निर्माणाधीन अन्य एम्स की प्रगति भी धीमी

मोदी सरकार ने 2014 में चार नए एम्स, 2015 में 7 एम्स और 2017 में दो एम्स निर्माण का ऐलान किया। लेकिन 2018 में अपनी चौथी सालगिरह से ऐन पहले मोदी कैबिनेट ने देश में 20 नये एम्स बनाने का ऐलान किया, पर यह सारे एम्स जुमले साबित हुए हैं। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2011 में 6 एम्स बने थे, जिसमें रायपुर, पटना, जोधपुर, भोपाल, ऋषिकेश और भुवनेश्वर एम्स शामिल हैं।

मोदी काल में घोषित एम्स में से अधिकांश के बनने की तारीख अप्रैल 2021 बताई गई थी, पर हाल यह है कि कोई काम पूरा नही हुआ है। झारखंड के देवघर में बनने वाले एम्स का अभी एक-चौथाई काम ही पूरा हुआ है। गुवाहाटी में बनने वाले एम्स का अभी तक महज एक तिहाई काम ही पूरा हो पाया है, पश्चिम बंगाल के कल्याणी में बनने वाले एम्स का कार्य अधूरा है। आंध्र प्रदेश के मंगलागिरी में बनने वाले एम्स के लिए रेत ही उपलब्ध नहीं है। जम्मू के सांबा में बनने वाले एम्स का भी महज सात फीसदी काम पूरा हुआ है।

गुजरात के राजकोट में बनने वाले एम्स, मदुरई में बनने वाले एम्स और जम्मू कश्मीर के अवंतीपुर में बनने वाले एम्स अभी कागजो पर ही है। यही हाल उत्तर प्रदेश के रायबरेली एम्स का भी है। मनमोहन सरकार ने 2006 में 6 'एम्स' की घोषणा की, जिसका निर्माण 2009 में शुरू हुआ था। हालांकि इनका 60 प्रतिशत निर्माण पूरा होने का दावा किया जाता है, परंतु इनके लिए तो अभी तक सामान की खरीद भी पूरी नहीं हुई और निर्माण में देर होने से लागत में भी पहले की तुलना में भारी वृद्धि हो गई है।

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