संघर्ष के बाद सत्ता के शिखर पर पहुंचे योगी ने हमेशा भाजपा नेतृत्व को कराया हिंदू युवा वाहिनी की ताकत का एहसास
उत्तर प्रदेश की सत्ता की बागडोर संभाले योगी आदित्यनाथ को चार वर्ष से अधिक हो चुके हैं। उनका कार्यकाल अब अवसान की ओर है। इस बीच पहली बार उनके कार्यों की समीक्षा विपक्षी नहीं बल्कि उनके साथी ही कर रहे हैं। जिसमें अब तक की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनाव की परीक्षा इनके लिए पास करना आसान नहीं होगा। ऐसे में समय रहते भाजपा संगठन डैमेज कंट्रोल में जुटा है। जिसको लेकर दिल्ली दरबार में कवायद शुरू हो चुकी है।
जिसका नतीजा अभी जल्द सबके सामने होगा। ऐसे दौर में राजनीतिक विश्लेषको के नजर में योगी आदित्यनाथ को नकार कर कोई रणनीति बनाना आत्मघाती कदम हो सकता है। बीजेपी नेतृत्व को अपने हिंदूवादी संगठन के बदौलत पूर्व में कई बार चुनौती दे चुके योगी आदित्यनाथ के अतीत को समझना यहां जरुरी होगा।
उत्तराखंड के पौढी गढवाल जिले के पंचूर गांव में राजपूत परिवार में 5 जून 1972 को जन्मे योगी आदित्यनाथ का दीक्षा लेने के पूर्व अजय कुमार बिष्ट नाम था। सीएम योगी ने 1989 में ऋषिकेश के भरत मंदिर इंटर कॉलेज से 12वीं पास की और 1992 में हेमवती नंदन बहुगुणा गढवाल विश्वविद्यालय से गणित में बी.एसी की। इसी कॉलेज से उन्होंने एम.एससी भी की।
1992 में योगी गोरखपुर आए और महंत अवैधनाथ से दीक्षा ली और 1994 में संन्यासी बन गए। महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी को गोरखनाथ मंदिर का महंत बना दिया गया। 1998 में योगी ने गोरखपुर लोकसभा सीट से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और वो जीत गए। 12वीं लोकसभा चुनाव में वे सबसे कम उम्र के सांसद थे, उस समय उनकी उम्र केवल 26 वर्ष की थी। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे। 2017 में उन्होंने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार 5 बार सांसद चुने गए हैं।
कई हिंसा की घटनाओं में अपने त्वरित पहल के चलते चंद वर्षों में ही फायर ब्रांड नेता के रुप में पहचान बनाने में कामयाब रहे। इस बीच बीजेपी के कद्दावर नेता बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय व उनके छह साथियों की नवंबर 2005 में हत्या हो गई। इसमें माफिया मुख्तार अंसारी का नाम सामने आया।
इस राजनीतिक सफलता के पीछे उनका खुद का संगठन होना प्रमुख रहा। महंत दिग्विजय नाथ से लेकर अवैद्यनाथ तक की अखिल भारतीय हिंदू महासभा के रूप में पहचान रही। इससे आगे कदम बढ़ात हुए वर्ष 2002 में रामनवमी के दिन योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में हिंदू युवा वाहिनी की स्थापना की। इसे हिंदू युवाओं का सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी समूह बताया गया। डुमरियागंज के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह, राकेश सिंह पहलवान, दीपक अग्रवाल ,सुनील सिंह का प्रमुख रूप से स्थापना में योगदान रहा। हालाकि बाद के तीनों में दीपक अग्रवाल संगठन से दूर चले गए वही सुनील सिंह ने अलग हिंदू संगठन वर्ष बना लिया।जिसे बाद में स्वयं भंग कर खुद समाजवादी पार्टी में चले गए। राकेश सिंह पहलवान ने भी संगठन से दूरी बना ली । इस समय गोरखपुर में संघ के सेवा भारती के काम में सक्रिय हैं।
दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ अपने कार्य क्षमता के बदौलत संगठन को धार देने में लगे रहे। जल्द ही संगठन को गोरखपुर मंडल से बाहर विस्तार देने में जुट गए। कई हिंसा की घटनाओं में अपने त्वरित पहल के चलते चंद वर्षों में ही फायर ब्रांड नेता के रुप में पहचान बनाने में कामयाब रहे। इस बीच बीजेपी के कद्दावर नेता बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय व उनके छह साथियों की नवंबर 2005 में हत्या हो गई। इसमें माफिया मुख्तार अंसारी का नाम सामने आया।
इसके खिलाफ योगी आदित्यनाथ ने सख्त तेवर दिखलाया।इसकेे पूर्व भी मुख्तार अंसारी के गढ़ में योगी ने चुनौती दी थी। पहली बार सीएम योगी ने 1989-90 में आजगढ़ के चितारा महमूदपुर में गये थे। यहां पर एक पुजारी की हत्या कर दी गयी थी और जब सीएम योगी को इसकी जानकारी मिली तो वह न्याय दिलाने के लिए खुद वहां गये थे और जिला प्रशासन से लोहा भी लिया था। सीएम योगी आदित्यनाथ दूसरी बार वर्ष 2003 में शिब्ली कालेज के छात्रसंघ चुनाव के दौरान छात्रनेता अजीत की हत्या के बाद परिजनों को न्याय दिलाने जाने वाले थे।
हालांकि उस समय के डीएम व एसएसपी ने सुरक्षा कारणों से योगी आदित्यनाथ को शहर में नहीं आने दिया था। योगी आदित्यनाथ पर 7 सितम्बर 2008 को आजमगढ़ के शहर कोतवाली के तकिया मोहल्ले में जानलेवा हमला हुआ था। हालांकि योगी की सुरक्षा में तैनात समर्थकों ने पलटवार करते हुए हमलावर को मार गिराया था, जिसकी पहचान मनीउल्लाह (18) वर्ष के रूप में हुई थी। इस मामले में योगी के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करायी गयी थी। इस घटना के बाद जिले में दंगा भड़क गया था और जीयनपुर मठाधीश सहित कई लोगों पर हमला हुआ था। हिंदू युवा वाहिनी की अगुआई में कई हिंदूवादी संगठनों ने आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ एक रैली का आयोजन किया था। इस रैली में योगी आदित्यनाथ मुख्य वक्ता थे। उसी में हिस्सा लेने जाने के दौरान यह घटना हुई थी।
इधर गोरखपुर बस्ती मंडल में इनकी सर्वाधिक सक्रियता रही।महराजगंज ज़िले में पंचरूखिया कांड को लेकर वे चर्चा रहे। जिसमें योगी आदित्यनाथ के काफ़िले से चली गोली से सपा नेता तलत अज़ीज़ के सरकारी गनर सत्यप्रकाश यादव की मौत हो गई थी। इस मामले की सीबीसीआईडी को जांच सौंपा गया और उसने जांच में योगी को क्लीन चिट दे दी। उनके सक्रियता इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि एक बार गोरखपुर में नेशनल हाइवे पर ट्रक से कुचलकर गाएं मर गईं। इसे आईएसआई की साज़िश बताते हुए तीन दिन की बंदी का ऐलान कर दिया। साल 2002 में गुजरात की घटनाओं पर हिंदू युवा वाहिनी ने गोरखपुर बंद कराया था।
कुशीनगर ज़िले में साल 2002 में मोहन मुंडेरा कांड हुआ। जिसमें एक लड़की के साथ कथित बलात्कार की घटना के हिंसा भड़क गई। इसमें 47 अल्पसंख्यकों के घर में आग लगाने की बात सामने आई थी। गोरखपुर में जनवरी 2007 में एक युवक की हत्या के बाद हियुवा कार्यकर्ताओं द्वारा सैयद मुराद अली शाह की मज़ार में आग लगाने की घटना के बाद हालात बिगड़ गए और प्रशासन को कर्फ़्यू लगाना पड़ा था। रोक के बावजूद योगी द्वारा सभा करने और उत्तेजक भाषण देने के कारण उन्हें 28 जनवरी 2007 को गिरफ़्तार कर लिया गया। बताया जाता है कि इन आंदोलनों में भागीदारी से योगी आदित्यनाथ के युवा संगठन हिंदू युवा वाहिनी की ताकत तेजी से बढ़ी।
उत्तर प्रदेश को 9 संभाग में बांट कर संगठन को दिया गया विस्तार
योगी आदित्यनाथ की पहचान कट्टर हिन्दूवादी के रूप में राज्य से बाहर भी बनने लगी थी। इनके लोगों का कहना है कि इसमें मददगार साबित हुई मुलायम सिंह यादव, मायावती, अखिलेश की सरकारों में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियां। संगठनात्मक संरचना को विस्तार देने के लिए उत्तर प्रदेश को 9 संभाग में बाटा गया। जिसमें गोरखपुर बस्ती संभाग, लखनऊ कानपुर संभाग, सहारनपुर बरेली संभाग, बनारस प्रयागराज संभाग, आगरा अलीगढ़ संभाग, मेरठ गौतम बुद्ध नगर संभाग, बुंदेलखंड संभाग, आजमगढ़ संभाग, मुरादाबाद संभाग को शामिल किया गया।इसके अलावा कमिशनरी स्तर पर विभाग प्रमुख व जिले स्तर पर संयोजक नामित किए गए।
संगठन की ताकत से आरएसएस की बने पहली पसंद
गुजरात के बाद संघ के लिए उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी प्रयोग स्थली हमेशा रही है। इसके लिए संघ को एक मुखर चेहरे की तलाश थी। यह चेहरा बनने में योगी आदित्यनाथ कामयाब हुए। जिसका नतीजा रहा कि उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में अपार बहुमत के बाद संघ के पहल पर योगी को यूपी के सत्ता के शिखर पर बैठाया गया।
इसके पूर्व 2016 मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुई भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक में आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया था। तब संतों ने कहा, "हम 1992 में एक हुए तो 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा।
संगठन की ताकत ने हर लोकसभा चुनाव में योगी को दिलाई बढ़त
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ की एक बड़ी ताकत उनका संगठन हिंदू युवा वाहिनी (हियूवा) है । जिसके बदौलत लोकसभा चुनाव में भी भारी मत मिलती रही है। वर्ष 1998 के अपने पहले लोकसभा चुनाव में 26 हज़ार के अंतर से जीते, पर 1999 के चुनाव में जीत-हार का यह अंतर 7,322 तक सिमट गया। इसके बाद हिंदू युवा वाहिनी के इन कामों से गोरखपुर में उनकी जीत का अंतर बढ़ने लगा और साल 2014 का चुनाव वह तीन लाख से भी अधिक वोट से जीते। इसके बाद वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
हिंदू युवा वाहिनी(हियूवा) के बल पर पार्टी को भी देते रहे चुनौती
भाजपा में रहते हुए भी उनका हर चुनाव में भाजपा नेताओं से टकराव होता रहा है। वह अपने लोगों की सूची नेतृत्व के सामने रख देते और उन्हें टिकट देने की मांग करते। कई बार उन्होंने भाजपा के ख़िलाफ़ बाग़ी उम्मीदवारों को खड़ा किया और उनके प्रचार में उतरकर पार्टी के सामने संकट खड़ा कर दिया। कहा जाता है कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ हियूवा के मौजूदा उपाध्यक्ष प्रमोद सिंह को देवरिया सीट से, पडरौना के मौजूदा सांसद विजय दुबे को, गौ प्रबंधन आयोग के सदस्य अतुल सिंह को रामकोला से, विजय यादव को गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से, राघवेंद्र सिंह को डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र से व राणा प्रताप सिंह को पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। जिसका नतीजा रहा कि इन सभी सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। यही हाल वर्ष 2012 के चुनाव में भी रहा।
अब एक बार फिर अपने ही नेतृत्व के सामने योगी आदित्यनाथ को अपनी क्षमता का एहसास कराने के लिए परीक्षा देनी पड़ रही है। यह सब उत्तर प्रदेश में हाल में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में पार्टी की करारी हार के चलते हो रही है। साथ ही पार्टी पर्यवेक्षक के आकलन में उनके दल के ही अधिकांश विधायकों के योगी के प्रति नाराजगी के चलते विषम परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं। ऐसे वक्त में दिल्ली दरबार कोई अप्रत्याशित फैसला करे, उसके पहले योगी के पुराने तेवर व हियूवा की ताकत को जरूर संज्ञान में लेना होगा। जिससे की पार्टी को कल्याण सिंह के दिन न देखने पड़े। साथ ही ऐसे में वर्ष 2024 में पार्टी के लिए दिल्ली भी दूर हो सकती है।
(लेखक देवरिया स्थित पत्रकार हैं, विचार उनके निजी हैं)