भक्त का डूबना और नीब करोली बाबा का जाकर उसे बचाना

भक्त का डूबना और नीब करोली बाबा का जाकर उसे बचाना

हरिप्रया बताती है कि कूछ औरतों के साथ वह हरिद्वार घूमने गयी। वे सब औरतों अन्धेरे मुँह ही गंगा स्नान को चल देती थी। एक दिन वह सब अन्ध़ेरे में ही स्नान करने चली गयी। रोशनी का वहाँ नामोनिशान नहीं था। हरिप्रया स्नान करते करते कूछ आगे बड़ गयी । उनका संतुलन बिगड़ गया।

वे तेज़ धारा के साथ बह निकला और ज़ोर से चिल्लाई, "अरे मैं बह गई ! कोई तो बचाओ ।" यह सुनकर साथ आई अध्यापिका उन्हें बचाने नदी में कूद गई । लेकिन मेरा भार ज़्यादा था , मैंने भय से उसे जकड़ लिया और वो भी मेरे साथँ डूबने लगी। कुछ ही देर में हम अचेत हो गये, जब हमें होश आया तो हम किनारे पर पड़े थे ।

तब साथ की महिलाओं ने बताया कि लीला माई रोते हुए चिल्लाते हुए कि -"महाराज हरिप्रिया डूब रही है उसे बचाओ । महाराज आओ।" तभी सहसा कम्बल ओढ़े एक आदमी पानी में कूद गया और दोनों को बचाकर पेट का पानी निकाला और चला गया, फिर नज़र नहीं आया ।

इस लीला का स्पष्टीकरण बाबा ने बाद में स्वयं किया। हम कैची लौटकर जब उन्हें प्रणाम करने पहुँचे, प्रणाम करते ही बाबा बोले,"चली जाती है आधी रात को ही स्नान करने । फिर हमें बचाना पड़ता है ।"

-- पूजा वोहरा/नयी दिल्ली

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