नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त महाराज जी के पास पर उसी वक्त दफ़्तर की कुर्सी पर भी बैठा दिखा सबको!
बाबा जी महाराज ने भी कई अवसरों पर ऐसी ही परिस्थितियों में आबद्ध अपने भक्त-शरणांगतों की लाज की रक्षा हेतु इसी प्रकार की लीला-क्रीड़ा कर भगवान के उक्त चरित की पुनरावृत्ति कर डाली । और ऐसी लीलाओं के माध्यम से भी स्पष्ट कर दिया कि – 'मैं कौन हूँ । (परन्तु तब उनके इस रूप-स्वरूप विशेष की पकड़ ही किसको हो पाती सभी तो मनेच्छाओं की जकड़ से मोह-पाश में आबद्ध थे ।)
श्री आर० पी० पाण्डे जी को आफिस पहुँचने में देर हो चुकी थी। सोचा “अब आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी। तब तक दादा के घर बाबा जी के ही दर्शन क्यों न कर लूँ ।” सो बाबा जी के श्री चरणों पर जा पहुँचे ।
और बाबा जी ने उन्हें अपने पास ऐसा बिठा लिया कि आधे दिन की छुट्टी का भी प्रश्न शेष हो गया । पाण्डे जी सोचते रह गये कि अब तो पूरे ही दिन की छुट्टी लेनी पड़ेगी । तभी बाबा जी से “अब जा । काम नहीं जायेगा ?”– सुनकर आप पूरे दिन की छुट्टी की अर्जी लगाने हेतु जब दफ्तर पहुँचे तो हाजिरी बाबू आश्चर्य से बोल उठा, “पाण्डे जी, आप तो सुबह से यहीं हैं। तब यह छुट्टी की अर्जी कैसी ?” पाण्डे जी द्वारा शंका करने पर उसने हाजिरी रजिस्टर में उनके दस्तखत भी दिखा दिये!!
इस घटना से और भी अधिक आश्चर्यान्वित हुए पाण्डे जी अपनी सीट पर पहुँचे तो आस पास बैठे अन्य कर्मचारियों से जिक्र करने पर उन्होंने भी पुष्टि कर दी कि आप तो सुबह से ही अपनी सीट पर बैठे काम कर रहे थे !! बाबा जी की इस दया का गुणगान करने के सिवा पाण्डे जी तब और कर भी क्या सकते थे । (परन्तु क्या तब उन्हें स्पष्ट हो गया होगा कि बाबा जी ही पाण्डे जी बनकर यह लीला कर रहे थे ?)