नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: सोते सोते ड्राइवर ने पहाड़ी मार्ग में उनकी कार को सकुशल कैंची पहुँचाया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: सोते सोते ड्राइवर ने पहाड़ी मार्ग में उनकी कार को सकुशल कैंची पहुँचाया

गोयल साहब को इससे भी विचित्र एक और अनुभव हुआ । अपने फरीदपुर प्रतिष्ठान से ये शारीरिक रूप से अत्यंत अवसाद-ग्रस्त, क्लान्त स्थिति में रात होते बरेली आये और कुछ हल्का-फुल्का खाकर सो गये । और तभी कुछ देर बाद ही बाबा जी भी वहाँ पहुँच गये !! उठकर इन्होंने उनका स्वागत किया । प्रसाद पवाकर, चादर आदि बदलकर बाबा जी को अपने पलंग पर शयन करा दिया । स्वयँ पलंग के पास नीचे जमीन पर लेट सो गये । अंग अंग दुःख रहा था, ज्वर भी था, सिर में पीड़ा भी ।

पर साढ़े दस-ग्यारह बजे रात बाबा जी ने इन्हें जगाया और कहा, "हम कैची जायेंगे । गाड़ी निकालो।" सुनकर मन ही मन ये दुःखी हो गये कि ऐसी शारीरिक अवस्था में उनसे यह कैसे संभव हो पायेगा | इन्होंने कहा भी कि, “महाराज, कल सुबह चले चलेंगे ।" इस पर बाबा जी ने कहा, “तू नहीं चलता तो हम अपने आप चले जायेगे।” क्या करते बेचारे । लाचार हो कपड़े पहन किसी तरह गाड़ी निकाली और बाबा जी को बैठाकर ले चले ।

हल्द्वानी-काठगोदाम तक मैदानी सड़क पर तो किसी तरह चल लिये गाड़ी हाँक कर, पर आगे पहाड़ी मोड़दार चढ़ाई लेते हुये मार्ग के आ जाने पर हतोत्साह होने लगे । शरीर थक चुका था पर चुपचाप गाड़ी चलाते रहे । गेठिया पहुँचने पर इन्होंने सोचना प्रारम्भ किया अब तो मैं गाड़ी को अवश्य खड्ड में डाल दूँगा या पहाड़ से टकरा दूंगा ।

बाबा जी से कहूँगा कि आज रात भूमियाधार में रुक लें, सुबह कैंची चले चलेंगे - आदि, पर सोचते सोचते ही और इसके लिये हिम्मत जुटाते भूमियाधार भी निकल गया तो ये एकदम निढाल हो गये । भीषण हताशा में ये थकान के कारण अर्धचेतना को प्राप्त निद्रा-ग्रस्त हो गये । इनका सिर स्टीयरिंग से जा लगा !! पहाड़ी रास्ते, जगह जगह छोटे-बड़े मोड, चढ़ाई, फिर ढलान, और उस पर भी आने-जाने वाले यातायात से बचाव एक तरफ खड्ड तो एक तरफ पहाड़ !! (कल्पना) की जा सकती है इस भयावह परिस्थिति की ।)

परन्तु कार चलती रही !! और १२-१३ किमी० दूर चल कर तभी रुकी कैची धाम के फाटक पर जब बाबा जी ने इन्हें झकझोर कर निद्रा-बेहोशी से जगाकर कहा, “सो रहे हो ? गाड़ी रोको । कैंची आ गई !!” अचकचा कर इन्होंने ब्रेक लगा कर गाड़ी रोक दी । मन ही मन महाराज जी की उस अलौकिक शक्ति को, जिसने ड्राइवर की सुप्तावस्था में इस पहाड़ी मार्ग में १२-१३ किमी० उनकी कार को सकुशल गन्तव्य तक पहुँचा दिया, प्रणाम किया ।

(महासमाधि के उपरान्त गोयल जी के महाराज जी की मूर्ति को भावपूर्ण प्रणाम करते देख जिज्ञासावश अलौकिक यथार्थ के लेखक, राजदा ने उनसे उनके उक्त दो अनुभव सुने, और फिर मुझे भी सुनाये (मुकुन्दा) बाबा जी महाराज की ऐसी अलौकिकता-पूर्ण लीला, जिसमें उन्होंने सर्प दंश के कारण अर्ध चेतन अवस्था को प्राप्त युधिष्ठिर जी द्वारा भूमियाधार से रानीखेत और वहाँ से कैंची आश्रम तक जीप चलवाई, गजेन्द्र मोक्ष पुष्पाञ्जलि के अलौकिक उपचार शीर्ष में दी गईं गाथाओं में वर्णित की जा चुकी है ।

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