नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब सरदार जी को बेटे का दिया वरदान महाराज जी की समाधी के बाद भी सत्य हुआ

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब सरदार जी को बेटे का दिया वरदान महाराज जी की समाधी के बाद भी सत्य हुआ

वर्ष १९६३, जून में एक सरदार जी अपने लड़के के साथ कैंची धाम आये थे । यूँ ही पूछने पर कि आप कहाँ से आये, बाबा जी को कब से जानते हैं, आदि, तो उन्होंने अपनी कथा यूँ सुनाई:

मैं वर्ष १९७२ में कैंची धाम आया बाबा जी के दर्शनों को। बाबा जी बरामदे में तखत पर बैठे हुए थे। बड़ी भीड़ थी। मैं बहुत पीछे खड़ा था। तभी मुझे अपने सामने बुलवाकर बैठा लिया और छूट बोल उठे, “लड़का लेने आया है ?” (सर्वत्र सदा घट घट की जानो ।)

मैंने केवल इतना कहा, “आप तो सब जानते हैं, महाराज ।” मेरे तीन लड़कियाँ हो चुकी थीं और मैं एक लड़का-औलाद के लिये तरस गया था । बाबा जी बोले, “उसको (अपनी पत्नी को) क्यों नहीं लाया ।”

मैं बोला, “उनकी तबीयत ठीक नहीं है, बाबा” । बोले, “अब लाना उसके बाद मुझे फिर से कुटी में बुला लिया बाबा जी ने । वहाँ कहा, “लड़का तो हो ही जायेगा, हमने कह दी, पर उसको भी लाना यहाँ ।” बाद में मैं सपत्नीक भी आकर दर्शन कर गया।

बाबा वर्ष १९७३ में अन्तर्ध्यान भी हो गये । परन्तु उनके वचनों पर मेरा विश्वास बना रहा और वर्ष १६७६ में बाबा जी के आशीर्वाद का सुफल इस गुरुवचन सिंह के रूप में प्राप्त हो गया मुझे ।

-- सरदार सतनाम सिंह, एडवोकेट, बरेली

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