नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी ने बिगड़ैल घोड़ी की सवारी की
नीब करौरी मंदिर में महाराज जी के दरबार में दर्शनार्थियों की भीड़ तो लगी ही रहती थी । उनमें एक दारोगा भी आते थे अपनी घोड़ी पर चढ़े । घोड़ी बड़ी ही बिगड़ैल थी तथा अन्य किसी सवार को उछाल कर गिरा देती थी ।
दारोगा के मन में विचार आया कि अगर बाबा जी भी इस पर बैठे तो घोड़ी उन्हें भी गिरा देगी । मन के भाव को छिपाये उसने बाबा जी से घोड़ी के बारे में यह शिकायत कर दी । परन्तु अंतर्यामी से दारोगा के मन की बात कैसे छुपी रहती ?
सो एक दिन जब दारोगा जी घोड़ी की जीन लगाम खोल उसे पास के पेड़ से बाँधकर आये तो बाबाजी फुर्ती से उठकर घोड़ी के पास पहुँच गये और उसे खोलकर उसकी नंगी पीठ पर सवार हो गये उछलकर। घोड़ी बेतहाशा दौड़ पड़ी और उछल-उछल कर बाबाजी महाराज को गिराने की चेष्टा करने लगी ।
गाँव वालों के कथन अनुसार घोड़ी बड़ी देर तक उछलती-कूदती रही । पर महाराज जी कभी उसकी पीठ पर तो कभी गर्दन पर और कभी उसकी पेट से चिपके उसे लगातार दौड़ाते ही रहे जब तक कि वह बुरी तरह हाँफ न गई और मुँह से फेन के साथ खून न आने लगा ।
दारोगा के साथ सभी इस विस्मयकारी लीला को देखते रह गये तभी घोड़ी एकदम शांत हो गई और बाबा जी उतर कर पुनः अपने आसन पर पूर्ण रूपेन साधारण अवस्था में बैठ गये (मानो कुछ हुआ ही नहीं और न कुछ श्रम ही हुआ !!) दारोगा जी उलाहना देने लगे कि, "आपने मेरी घोड़ी बेकार कर दी ।" तब बाबाजी ने केवल इतना भर कहा, "तूने क्यों सोचा था कि घोड़ी मुझे गिरा देगी ?"सुनकर दारोगा जी चुप हो गये ।
-- अनन्त कथामृत से साभार