नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के घर वादा करके ना जाना और उससे स्वप्न में पूरियाँ खाना

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के घर वादा करके ना जाना और उससे स्वप्न में पूरियाँ खाना

सिपाहीधारा (नैनीताल) की कु० शान्ता पाण्डे ने बड़े आग्रह से महाराज जी से अपने घर प्रसाद पाने के लिये कहा तो वे कल आने को राजी हो गये । साथ में कह दिया कि, "हमारे साथ ८-१० भगत भी आयेंगे ।” दूसरे दिन सब तैयारी कर जब शान्ता जी उन्हें बुलाने बजरंगगढ़ गईं तो बाबा जी ने डांडी भी मंगवा ली उनसे । फिर देर हुई तो डाँडी भी वापिस करवा दी कहकर कि, "हम पैदल ही चलेंगे ।"

और फिर देर होते होते रात होने को आई तो कह दिया, "अब हम नहीं आयेंगे । तू जा ।" रुआँसी हुई शांता जी किसी तरह अंधेरे में ही घर आ गईं तो घर पहुँचकर अभावग्रस्त गृहस्थी को किसी तरह चलाते पिता से भी इस बरबादी पर उन्हें बुरा-भला सुनना पड़ गया । मन ही मन रुदन करती शान्ता जी ने प्रण कर लिया कि अब इन्हीं पूरियों को बाबा जी को खिलाऊँगी और तब तक मैं भी कुछ न खाऊँगी ।

दो दिन बीत गये । न बाबा जी आये और न इन्होंने कुछ खाया। तीसरे दिन जब माँ के समझाने-बुझाने पर ये उन्हीं पूरियों को लेकर बाबा जी के पास पहुँची तो उन्होंने तटस्थ भाव से कहा, *क्या लाई है, रख दे, स्नान के बाद खाऊँगा ।" और जब स्नान के बाद पुनः कहा, “क्या लाई है दे”, तो ये फूट पड़ी कहते हुए कि, "हाँ कहकर भी आप नहीं आये । मुझे भी भूखा रखा ।" बाबा जी बोले, "हम तो आये थे और तूने हमें पूरियाँ भी खिलाई थीं । खिलाई थीं कि नहीं बोल ?" तब शान्ता जी अपने उस रात के स्वप्न की याद कर बोलीं, "वह तो स्वप्न में खिलाई थीं।"

तब बाबा जी ने गम्भीर होकर अत्यन्त सारगर्भित सूक्त वाणी में कहा, (वह स्वप्न था तो) "क्या जो अब हो रहा है वह स्वप्न नही है ?" और फिर बासी पूरियाँ खाने लगे ।

इस लीला से बाबा जी ने उपस्थित भक्त मण्डली को समझा दिया कि संसार में होती सभी क्रियायें स्वप्न-सम ही हैं । मोह निशा सब सोवनिहारा ।

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