नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : बिना नमक की दाल, पर प्रेम वश महाराज जी ने की ग्रहण
मुकुन्दा बताते है, एक बार वर्ष 1967 सितम्बर माह की बात है बाबा को अर्पित भोग प्रसाद को स्वयं पाते हुए मैंने पाया कि दाल में नमक ही नहीं है । मैं एकदम पत्नी पर बरस पड़ा," कि महाराजजी के भोग का ध्यान नहीं देती हो ? कोई श्रद्धा नहीं तुम्हें । दाल में नमक नहीं डाला।" पत्नी बोली " मैंने जैसा भी भोग अर्पण किया है प्रेम से किया है ।" महाराजजी ने उसे पा भी लिया है । लो तुम्हारी दाल में नमक डाल देती हूँ ।"
नवम्बर में बाबा जी इलाहाबाद आ गये । हम दोनों उनसे मिलने दादा के घर दौड़ पड़े । पहले पत्नी ने सिर झुकाया तो बाबा जी बोल उठे," हमें बिना नमक की दाल खिला दी ।" पर जब मैंने प्रणाम किया तो बाबा बोल उठे ,"पर इसने बड़े प्रेम से खिलाई थी, ताई सो हमने भी खाय लई !!
सच में भाव और प्रेम मिश्रित भोजन बाबा जी पाते है ।
जय गुरूदेव
अन्नत कथामृत
-- पूजा वोहरा/नयी दिल्ली