नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अपनी पुण्यतिथि भंडारे पर भक्त के पैसे खो जाने पर की युवक के रूप में मदद
वर्ष १९६३ की पुण्यतिथि भण्डारे के अवसर पर श्री राम मुरारी तिवारी नीब करौरी ग्राम से वृन्दावन पहुँच गये थे। पास में ५००) - ६००) - रु० की रकम थी जिसमें से अपनी भक्ति में बावले मुरारी जी ने मुक्त भाव से अगरबत्ती, भोग-प्रसाद आदि में व्यय किया तथा अन्य लोगों की भी हर तरह से सेवा की । बाबा जी महाराज इस नवयुवक की सेवा से लगता है, बहुत प्रसन्न हो गये और उन्होंने इस उत्साही भक्त को एक विचित्र ही प्रकार से अपनी प्रसन्नता का परिचय दे डाला ।
भण्डारे से पूर्ण होकर मुरारी जी दिल्ली (अपने कार्यक्षेत्र) के लिये रवाना हुए तो इनकी जेब में पर्याप्त-द्रव्य बचा था । आश्रम से निकलते निकलते, प्रेम भाव से सबसे मिलते-मिलाते इन्हें कुछ विलम्ब हो गया और जब मथुरा जंक्शन पर पहुँचे तो दिल्ली की गाड़ी के छूटने का समय हो गया था, पर बुकिंग खिड़की पर तो ६०-७० लोगों की लाइन लगी थी । यह सोचकर कि आगे खड़े किसी सज्जन से निहोरा कर अपना टिकट खरीदवा लूँ, इन्होंने जो जेब में हाथ डाला तो वहाँ कुछ भी न था !!
परन्तु वह युवक कौन था, पता न चला। मुरारी जी द्वारा २-३ पत्र बताये गये पते पर भेजने पर भी कोई उत्तर प्राप्त न हो सका !! अन्ततोगत्वा बाबा जी ने मुरारी जी को वीरभद्र आश्रम में अपनी सेवा में (फिलहाल) रख लिया है !! (१९६५)
सभी जेबें टटोल लीं कुछ न मिला या तो रहे सहे रुपये गिर गये थे या किसी ने निकाल लिये । अब ये अत्यन्त दुःखी कि जायें तो कहाँ जायें आश्रम भी १५-१६ कि०मी० दूर था । और न किसी से सहायता हेतु ही कह सके अनजान व्यक्ति को कौन क्या देता (यद्यपि टिकट मूल्य तब केवल ११)रु० मात्र था ।) ये दुःखी खड़े थे कि इतने में एक २०-२२ वर्ष का युवक इनके पास आ गया, पूछता–“भाई साहब, आप कहाँ जायेंगे ?”
और इनके इतना ही बोल पाने पर कि “दिल्ली । पर वह युवक कहता दौड़ गया कि "ठहरिये, मैं आपका टिकट ले आता हूँ ।” और कुछ ही क्षणों में न मालूम उस भीड़ में से कैसे (?) इनके लिये दिल्ली का टिकट ले आया और इन दोनों ने दौड़ते, पटरियाँ फाँदते हुए पटरी पार के प्लेटफार्म पर रेंगती गाड़ी को पकड़ लिया अब, इस युवक ने इनके लिये सीट पर एक तौलियानुमा रूमाल भी बिछा दिया, (मुरारी जी चिट सफेद पैन्ट पहिने थे) और उन्हें उस पर जबरन बिठा दिया ।
तब मुरारी जी ने इन्हें अपनी व्यथा सुनाई तथा इस युवक को बहुत बहुत धन्यवाद दिया कि उसने इन्हें कैसी कठिन परिस्थिति से उबार लिया । साथ में मुरारी जी ने इन्हें आश्वस्त कर दिया कि दिल्ली पहुँचकर इस युवक को वे स्वयँ आकर या मनीआर्डर से पैसा भेज देंगे । परन्तु युवक का पता पूछने पर पहिले तो वह आनाकानी करता रहा और फिर बोला कि वह तो आगे तीसरे स्टेशन पर ही उतर जायेगा ।
फिर भी मुरारी जी ने उसका पता ले ही लिया उसे भी अपने दिल्ली का पता दे दिया और तीसरा स्टेशन आने पर वह युवक गाड़ी से उतर मुरारी जी वाली खिड़की पर आ गया तथा बातें करता रहा। पर जैसे ही ट्रेन चलने लगी, उसने मुरारी जी से यह कहते कि, “अभी सफर काफी है, चाय-पानी कर लीजियेगा", बीस रूपये का नोट इन्हें देना चाहा पर मुरारी जी के मना करते-करते वह चलती ट्रेन में इनके पास नोट डालकर चलता बना। दिल्ली में स्टेशन से घर तक पहुँचने की भी व्यवस्था कर दी बाबा जी ने !!