नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: महाराज जी क्या नहीं कर सकते!

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: महाराज जी क्या नहीं कर सकते!

श्री ओम प्रकाश सिक्का वर्ष 1963 की होली के पूर्व वृन्दावन आश्रम में महाराज जी एवं श्री माँ के दर्शनार्थ कार में हल्द्वानी से अपनी पत्नी के साथ चल पड़े। बदायूँ के आगे एक गाँव के पास देखा कि सड़क में आर पार पत्थरों की बाड़ लगी है। मन में सोचा कि गाँव के लड़कों ने होली का चन्दा वसूलने हेतु ऐसा किया होगा । उस बाड़ को एक छोर से काटते हुए ये आगे निकल गये ।

परन्तु कुछ दूर पर एक वैसी ही पत्थरों की बाड़ फिर मिल गई । इसे भी इन्होंने उसी तरह पार कर लिया । परन्तु सोचते रहे कि सड़क पर आती-जाती न तो कोई अन्य गाड़ी दिखाई, दे रही है, न स्कूटर मोटर साइकिलें ही। आगे ही एक पुल आ गया जिसका रास्ता भी एक बड़े पत्थर से रोका गया था। अब ये कुछ पशोपेश में पड़े कि इतना बड़ा पत्थर कैसे हटायें।

तभी एकाएक वहाँ एक व्यक्ति प्रकट हो गया जिसने इन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “यहाँ कहाँ जा रहे. हो, जानते नहीं पुल टूट गया है ? रास्ता कचला से होकर है अब । अच्छा, अब आ ही गये हो तो जाओ । तुम्हारी गाड़ी निकल जायेगी ।" और उस व्यक्ति ने वह पत्थर स्वयँ हटा लिया, सिक्का जी तो श्री माँ-महाराज जी के दर्शन की आशा में मदहोश थे।

उन्हें दिख ही नहीं रहा था, न समझ में आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है और कि पुल टूटा है ये गाड़ी चलाते रहे । पर जब पुल पार पहुँचे तो वही व्यक्ति पुनः वहाँ भी दिखा पुल के उस पार से रास्ता रोकने के लिये पुल के अन्त में रखे पत्थर को हटा रहा था !! उस वक्त इन्हें यह भी होश नहीं रहा कि वही व्यक्ति पुल के इस पार भी इतने अल्प समय में कैसे आ गया !! वाह प्रभो ! अपने को इतनी सरलता से प्रगट भी कैसे होने देते ।

पुल के आगे भी पूर्व की तरह पत्थरों की बाड़ दो जगह मिली । उन्हें पार कर ये वृन्दावन पहुँचे । हनुमान जी एवं महाराज जी को प्रणाम किया फिर श्री माँ को प्रणाम करते अपने मार्ग के अनुभव सुनाये तो श्री माँ ने केवल इतना ही कहा, “महाराज जी क्या नहीं कर सकते ।” तभी इनके मस्तिष्क में विचार कौंधा 'महाराज जी ही तो नहीं थे उस व्यक्ति के रूप में ?" पर अवसर तो चूक ही गये थे सिक्का जी ।

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