नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: वीरभद्र (ऋषीकेश) का हनुमान मंदिर और उसके पीछे की कहानी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: वीरभद्र (ऋषीकेश) का हनुमान मंदिर और उसके पीछे की कहानी

अपनी शरीर लीला के कुछ वर्ष पूर्व बाबा महाराज ने जंगलात विभाग से वीरभद्र (ऋषीकेश-हरिद्वार मार्ग में) एक एकड़ भूमि लीज में प्राप्त कर उसे अपने नाम से अधिगृहीत कर ली थी (जिसके विकास के लिये तथा उसमें हनुमान जी के लिये एक बड़ा मंदिर-आश्रम आदि के निर्माण के लिये अपने स्थान पर श्री केहर सिंह जी को मनोनीत कर दिया था ।)

हरिद्वार-ऋषीकेश रोड पर ऋषीकेश से ६ किमी० दूर स्थित इस भूमि पर एक छोटी-सी हनुमान मूर्ति स्थापित कर तथा फूस की एक झोपड़ीनुमा कच्ची चौकीदार चौकी बनवा कर, साथ में क्षेत्र की चहार दीवारी और मंदिर के निर्माण हेतु डेढ़ लाख ईंटें जमा करवा बाबा जी ने इसे वहीं पास के एक स्थानीय व्यक्ति के पास बतौर अमानत सौंप रखा था। यह भूमि, उसके बाद, बिना किसी विकास के उस व्यक्ति के पास यूँ ही पड़ी रही । वर्ष १९७३ में बाबा महाराज ने महा समाधि भी ले ली । डेढ़ लाख ईंटों का अस्तित्व भी काल के गर्भ में समा चुका था ।

परन्तु श्री माँ से तो इस संदर्भ में महाराज जी सभी कुछ बता चुके थे, और तब वीरभद्र में हनुमान मंदिर के निर्माण का उनका मनसा-संकल्प कैसे अकारथ चला जाता ? श्री माँ यद्यपि इस ओर भी सचेत थीं परन्तु अन्य क्षेत्रों मंदिरों-आश्रमों के विकास निर्माण एवं व्यवस्था में व्यस्त रहने के कारण वीरभद्र हनुमान मंदिर के निर्माण की ओर पूरा ध्यान न दे सकीं ।

तब श्री माँ ने जून, १९८३ में कैंची में महाराज जी के तत्वपीठ के प्रतिष्ठापन दिवस के अवसर पर उपस्थित श्री पी० के० चोपड़ा (तब देहरादून में जल संस्थान के महाप्रबन्धक) को इस ओर प्रयास हेतु प्रेरित किया । आने वाले समय में (१) वीरभद्र में भूमि के अधिग्रहण, (२) उसमें हनुमान जी के छोटे मंदिर के निर्माण एवं प्रतिष्ठापन, (३) क्षेत्र) के विकास, (४) उसमें हनुमान जी के विशाल मंदिर के निर्माण, (५) उसी मनसा-पूर्ति में शिव मंदिर के निर्माण, एवं (६) २७ फुट ऊँचे विघ्न-विनाशक हनुमान जी के निर्माण एवं प्रतिष्ठापन में बाबा जी महाराज की मंशा-शक्ति का खेल स्पष्ट हुआ।

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