नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त को बच्चों को भोग पहले देने का आदेश, उसका न माना जाना और फिर उसका परिणाम!
लीला माई (अब दिवंगत) के पति, भक्त चन्द्र लाल साह जी (इंजीनियर) मरणासन्न रूप से बीमार थे । महाराज जी कुछ भक्तों को लेकर उन्हें दर्शन देने गये । वहाँ पहुँचकर सीधे पूजाघर में जाकर बैठ गये । सदा की भाँति लीला माँ उनके लिये भोग-प्रसाद ले आईं बनाकर । पर महाराज जी ने उनसे कहा, “जा, पहिले नीचे जाकर बच्चों को प्रसाद पवा । हम फिर पायेंगे ।”
परन्तु लीला माई (यह सोचकर कि महाराज जी का आगमन सुनकर पास पड़ोस के बच्चे जमा हो गये होंगे प्रसाद के लोभ में) उनसे जिद करने लगी कि, "नहीं महाराज, पहिले आप पाइये । बच्चों को फिर खिला दूंगी ।" महाराज जी ने तब कुछ तेज होकर कहा, आज्ञा नही मानती ? पहले बच्चों को खिला । " पर लीला माँ नहीं मानी और जबरदस्ती बाबा जी को सदा की भाँति अपने हाथ से खिलाने लगीं । (बाबा जी को वे बाल-रूप में ही भजती थीं ।)
उसके बाद जब नीचे गई देखने कि कितने बच्चे हैं तो पाया कि सारा कमरा विभिन्न उम्र तथा अनेक प्रकार के बच्चों से भरा था ।। घबराकर वे ऊपर आई उनके लिये प्रसाद लेने, पर जब पुनः नीचे गई तो पाया कि वहाँ अब एक भी बच्चा न था ! तब बाबा जी “अब कुछ नहीं हो सकता", कहते चले गये । कुछ ही काल बाद इंजीनियर साहब का शरीर भी शांत हो गया ।
कमरे में बच्चों की जमात का सृजन करना, फिर बच्चों का पुनः लोप हो जाना केवल महाराज जी की ही लीला थी - अपनी अनन्य भक्त लीला माँ के संकट के परिहारार्थ किन्तु सदा बाबा जी महाराज की आज्ञाओं का तन-मन-धन-प्राण से पालन करने वाली लीला माई उस दिन चूक गई । परिणाम विषम रहा ।