नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : महाराज जी का अपना अनूठा प्रवचन और भक्तों की आँखें खुल गयीं!
बाबा जी के दर्शनों के प्रारम्भिक दिनों में श्री माँ कुछ अन्य भक्त माइयों के साथ नैनीताल में उन दिनों आये हुए एक प्रसिद्ध वेदान्ताचार्य जी के प्रवचनों को सुनने जाया करती थी। उनके वेदान्त के ऊपर प्रवचनों में श्री माँ भी बहुत कुछ रुचि लेने लगी थी । महाराज जी इस तथ्य से अवगत थे ही ।
परन्तु महाराज जी तो श्री माँ तथा अन्य भक्त माताओं को वेदान्त का असली रूप बताना चाहते थे । अस्तु, एक दिन महाराज जी ने माँ से कहा कि, "आज उसका लोटा-जूता उठा लाना ।” बहुत साधारण-सी बात थी । फिर भी उपहास में-सी कही इस बात से कुछ माइयों के मन में महाराज जी के प्रति तर्क भी उठ गया ।
महाराज जी की लीला ! और होनी भी ऐसी हुई कि जब वेदान्ती जी का प्रवचन पूरा हुआ और वे जाने लगे तो उनको अपना जूता मिला ही नहीं !!
और जब बहुत खोजने पर भी न मिला तो वेदान्ती जी को अप्रत्याशित रूप का क्रोध व्याप गया। अभी अभी तो वे संसार की निःस्सारता पर तथा सांसारिक वस्तुओं पर मनुष्य के मोह पर प्रवचन दे रहे थे और अभी अभी अपना जूता खो जाने पर इतना क्रोध करने लगे हैं !
यही सोचती सभी माताएँ घर को चली गई (कि थोथा ज्ञान अपनी जगह है और वास्तविक ज्ञान वही है जिसे अपने आचरण में ढाल लिया जाये।) अगले दिन से उन्होंने प्रवचन सुनने को जाना बन्द कर दिया। बाबा जी का अपना प्रवचन तो इतना ही था लाना !! - उसका जूता-लोटा उठा!
(साधु-धर्म में प्रविष्ट, पर लीक से च्युत हुए व्यक्तियों को भी बाबा जी इसी तरह अपनी लीलाओं द्वारा जागरूक करते रहे थे जिनके दो-एक दृष्टांत आगे दिये गये हैं ।)