नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अपना मान टले टल जाये, भक्त का मान न टलते देखा

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अपना मान टले टल जाये, भक्त का मान न टलते देखा

परन्तु यही एक अकेला अवसर न था जब बाबा जी ने अपने भक्तों, अपने चरणाश्रितों के मान के समक्ष अपने स्वयं की भगवत्ता एवं सत्ता आदि को गौण न कर लिया हो, शून्य न कर लिया हो । परम-प्रेम के पाले पड़ कर महाप्रभु सदा ही ऐसे भक्ति के समक्ष अपने को ऐसे ही भूल जाते रहे अपनी अभिरुचियों का भी होम करते हुए।)

बाबा जी शहर (नैनीताल) में जब-तब जाते रहते थे । मैं सदा साथ रहता था उनके । यहाँ तक कि किसी भक्त के घर के भीतर भी उन्हीं के साथ ही रहता था (बाबा जी स्वयं भी मुझे साथ ले लेते थे इन अवसरों में भी।) उस दिन वे नैनीताल में जी० आई० कालेज के प्रिंसिपल के घर गये, पर मुझसे कह दिया, “पूरन, तुम बाहर ही रहो ।"

इस पर मेरे अहं को चोट-सी लग गई और मैं अनमना होकर मैदान के पार छोर में एक बेंच पर बैठ गया भरा हुआ ।थोड़ी देर मैंने वहीं से बाबा जी की आवाज सुनी, “पूरन कहाँ है, पूरन कहाँ है ?" पर मैं अनजान बना बैठा ही रहा अपनी जगह । बाबा जी बाहर आ चुके थे और मुझे देख भी चुके थे ।

उन्होंने इशारा कर मुझे आने का संकेत भी दिया पर मैंने देखकर भी मुँह फेर हाथ से लिया !! बाबा जी के साथ परिवार के सदस्य बातें कर रहे थे । मैंने थोड़ा-सा उधर को देखा तो बाबा जी ने फिर इशारा किया आने को, पर मैंने पुनः मुँह फेर लिया और बैठा ही रहा अपनी जगह । तब बाबा जी लोगों से बातें करते करते मेरी तरफ आने लगे, पर फिर भी मैं अनजान बना रहा ।

तब पास आकर बाबा जी ने अपने कम्बल से दो आम निकाल मुझे देते हुए धीरे से कहा, "आम बड़े मीठे हैं, खाले ।" मेरा सारा रोष धुल गया इस भक्त-वत्सल लीला पर (पूरनदा) ।अपना मान टले टल जाये, भक्त का मान न टलते देखा ।

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