नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: उत्तराखण्ड में भूमियाधार हनुमान मंदिर की स्थापना
बजरंगगढ की पूर्ण रूपेण व्यवस्था सम्पन्न कर बाबा जी ने उसे एक ट्रस्ट के हवाले कर दिया और फिर बजरंगगढ़ आना भी कम कर दिया । लीला-क्षेत्र बदलने जो थे । पूर्व में भी जब नैनीताल आते थे तो गेठिया-भवाली (काठगोदाम-अल्मोड़ा-रानीखेत मार्ग) के बीच भूमियाधार नामक गाँव में भी आते रहते थे । बाबा जी महाराज इस क्षेत्र में भी बही नैनीताल के सदृश लीलायें करते रहते थे ।
वही भण्डारे, घर-घर डोलना, कीर्तन-भजन-पाठ आदि के मध्य कृपा-लीलाओं की धूम मच जाती । अब तो उन्होंने भूमियाघार में ही अड्डा-सा बना लिया । नैनीताल कानपुर लखनऊ, अलीगढ़, इलाहाबाद, हल्द्वानी-किच्छा बरेली, दिल्ली आदि के भी भक्त समाचार मिलते ही भूमियाधार पहुँच इन लीलाओं के पात्र बन जाते अधिकतर रातें सड़कों पर, नालों में, गधेरों (पहाड़ी नालों) के ऊपर बने पुलों के नीचे बीत जाती इन गिने भक्तों के साथ ।
तब एक भक्त, श्री पदम सिंह ने महाराज जी के निवास के लिये अपने दुकान-नुमा भवन को अर्पण कर दिया मोटर रोड के किनारे ही । आसपास के हरिजनों द्वारा भी उसके पार्श्व से लगी अपनी अपनी भूमि के कुछ-कुछ टुकड़े दे देने पर शीघ्र ही भक्तों द्वारा वहाँ एक हनुमान मंदिर की स्थापना के साथ महाराज जी की कुटी, पुजारी का आवास गृह, तथा भण्डार गृह एवं भक्तों के निवास हेतु कमरे भी बना दिये गये ।
यह मंदिर भी बाबा जी ने भूमियाधार की हरिजन-बहुल जनता का अपने प्रति उनके निर्मल प्रेम के प्रतिदान स्वरूप ही बनवाया । अब महाराज जी ने जब-तब आकर भूमियाधार में निवास करना प्रारम्भ कर दिया, और यहीं से इधर-उधर (हल्द्वानी, बरेली, लखनऊ, कानपुर, अलीगढ, आगरा, इलाहाबाद, दिल्ली आदि) आना-जाना प्रारम्भ कर दिया ।
(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)