नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के अन्तर की सच्ची पुकार महाराज जी को वापिस बरेली खींच लाई
एक बार मैं वर्ष १९६२ में कैंचीधाम महाराज जी के दर्शनों को आया। मुझे विदा करते हुए बाबा जी बोले, “जा, ४-५ दिन में मैं भी बरेली आऊँगा।" लौटकर चौथे दिन से मैंने डाक्टर भण्डारी के घर (जहाँ महाराज जी बरेली आकर अवश्य आते थे) आदमी भेजना शुरू कर दिया कि देखकर आओ बाबा जी आये कि नहीं । परन्तु बाबा जी का तो पता भी न रहा कई दिन तक ।
नौकर भी ऊब गया इस सुबह-शाम दोपहर की दौड़ से । तभी मुझे भी बड़ा तेज बुखार हो चला । फिर भी मैं कम्बल ओढ़ कर बाबा जी की तलाश में भण्डारी जी के घर पहुँच गया । पता चला कि बाबा जी तो बरेली नहीं आये, शायद सीधे लखनऊ को निकल गये हैं। सुनकर मैं फफक कर रो उठा कि - कहकर भी बरेली क्यों नहीं आये। भण्डारी जी की पत्नी ने मुझे बहुतेरा समझाया ।
पर मैं बाहर बैंच पर बैठा बिफर कर रोता ही रहा और बहुत देर तक बच्चों की तरह रोता ही रह गया। तभी एक जीप फाटक में घुसकर बगल में आकर रुक गई, और मेरे देखते ही देखते बाबा जी उसमें से उतर कर सीधे भीतर चले गये मेरे ऊपर एक उड़ती नजर डालते ।
खुशी की बौखलाहट में मैं उन्हें प्रणाम भी न कर सका । तब रामानन्द ड्राइवर ने बताया महाराज जी तो फरीदपुर से भी आगे पहुँच चुके थे । परन्तु उसके आगे गाड़ी बढ़ी नहीं जाम हो गई वहीं । तब महाराज जी ने ही कहा, “अरे ! वो प्यारेलाल रो रहा है। चलो वापिस बरेली”, और हम १७-१८ मील आगे से वापिस आ गये !! (प्यारे लाल बरेली)